हज का हक और मोदी की नीयत
काम गैर जरूरी है वो सब करते है, आप कुछ नहीं करते गजब करते हैं.
राहत साहब ने पता नहीं पहला मिस्रा किस संदर्भ में कहा था, पर भारत की वर्तमान राजनीतिक में पहला मिस्रा बेहद सटीक है। खासकर मोदी जी के कार्यकाल पर।
2014 जीतने के बाद से अब-तक लगातार एक के बाद एक ऐसे विधेयक लाए हैं। जो समाज में खूब चर्चे में रहे और BJP के भरपूर राजनैतिक हित में भी। वो नोटबन्दी हो, GST हो या तीन तलाक़!
बीते दिनों सरकार हज सब्सिडी खत्म करने का फरमान जारी करते हुए कहा कि इन पैसों को मुस्लिम अल्पसंख्यक लड़कियों की शिक्षा पर खर्च किया जाएगा। बहरहाल सरकार की ये दलील बिल्कुल ऐसी ही है जैसे बचपन में लोग गलती करने के बाद भी विश्वासनियता कायम करने के लिए विद्या रानी की कसम खाया करते हैं।
मोदी सरकार के ऐसे हर फैसले से बेईमानी की बू आती है और मन में सवाल उठता है। तीन वर्षों से लगातार गिर रही भारत की अर्थव्यवस्था क्या आज इस हालत में पहुंच गई, की हमारे पास शिक्षा पर खर्च करने के लिए पैसे कम पड़ गया? हिंदुस्तान में अन्य धर्मों के धार्मिक संस्थाओं को विभिन्न प्रकार की सब्सिडी दी जाती है। तो क्या सरकार आने वाले समय में ऐसे ही कोई हवाला देते हुए उन्हें भी खत्म कर दिया जाएगा? या केवल BJP की हिंदुत्व छवि मजबूत करने के लिए ऐसा खेल खेला जा रहा है। अगर सच में इस धन को शिक्षा पर किया जाना है तो इसका प्लान कहा है? कितने रुपये की बचत होगी? शिक्षा के किस क्षेत्र में कब कितना खर्च किया जाएगा? इन पैसों से कितने नये शिक्षण संस्थान खोले जाएंगे? कितने रुपये कम पड़ रहें थे जो सब्सिडी खत्म करने के बाद पूरी हो जाएंगे? आने वाले कितने समय में हम अल्पसंख्यक लड़कियों के संदर्भ में कितनी तरक्की करने की उम्मीद कर रहे हैं? ऐसे किसी सवाल का सरकार ने कोई भी जवाब नहीं दे रही। ऐसे में सरकार की मंशा साफ दिखाई देती है ये फिर से एक प्रोपगेंडा है जो कि जनता को मानसिक तैर पर उलझाने के लिए किया गया है। जिससे बेरोजगारी, स्वास्थ और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर जनता का ध्यान न जाए। और सरकार अपनी एकाधिकार बनाए रखने में कामयाब रहे।
फर्जी दलीलें दे रही केंद्र की सरकार से मेरी गुजारिश है की अपने IAS अधिकारियों से एक दिन सचिवालय में समाज शास्त्र कि शिक्षा जरूर लें। जिससे सरकार को समझ आ सके की भारत जैसे देश में धर्म से इस प्रकार का व्यवहार समाज को किस दिशा में भेजती है। चाहे वो हिन्दू, मुसलमान, सिख या कोई भी धर्म हो। ये सभी हमारे देश की बुनियाद हैं। जो जिंदगी में समरसता बनाए रखने के लिए उत्तरदाई है। मैं धर्म से अपने तमाम मतभेदों के बाद भी ये कहना चाहता हूं की धर्म समाज में Right to equality/liberty/life इत्यादि बनाने के लिए एक मजबूत हथियार है। कृपा करके सरकार इसे विषैला न बनाए।
ब्रिटिश भारत से दी जा रही हज सब्सिडी स्वतंत्र भारत में हज एक्ट 1959 के तहत दी जाती है। 1973 में हज पर ले जा रही सीप में हुई दुर्घटना को संज्ञान में लेते हुए इंदिरा गांधी ने हज यात्रियों को हवाई जहाज से भेजने का फैसला किया। जिसके बाद हाजी Air India फ्लाइट से जाते हैं। सब्सिडी मूलत: तीन तरह से दी जाती है, जहाज का किराया, एयरपोर्ट पर खाने का इंतजाम और हज के दौरान अस्थायी आवास।
इसके आर्थिक आंकड़ों को समझने के लिए मैंने कमाल खान NDTV तथा अन्य रिपोर्ट को पढ़ा। उम्मीद है आंकड़ों को देख आप सन्न रह जाएंगे। 2018 में 1,75,000 हज यात्री हज पर जाऐंगे। हज के फार्म की किमत 300 रुपये है, जो Non refundable होता है। इस बार 3,55,000 लोगों ने आवेदन दिया जिससे सरकार को 10 करोड़ 65 लाख (10,65,00000 रुपये) की आमदनी हुई।
# 355,000*300=10,65,000,00 रुपये (10 करोड़ 65 लाख)
फर्स्ट क्लास हाजी से सरकार 24,100 रुपये तथा सेकेंड क्लास से 21,10,00 रुपये लेती है। करीब 70% लोग सेकेंड क्लास तथा 30% फर्स्ट क्लास से जाएंगे। इस तरह 52,500 करोड़ लोग 1265 करोड़ देकर फर्स्ट क्लास तथा 12,25,00 लोग 2584 करोड़ 75 लाख फीस देकर जाएंगे।
# (52,500-------1265), (1,22,500------ 2584)
# 1265+2584=3849 करोड़ रुपये.
इस प्रकार सारे हाजी सरकार को 3850 करोड़ रुपये देंगे। यह 3850 करोड़ रुपये हाजी 8 महीने पहले देते है। जिसका 7% की दर से 180 करोड़ ब्याज हुआ।
#(फार्म से हुई कमाई + 7% दर से 8 माह का ब्याज)
10,65,00,000 + 49,700,000 = 25,620,00,00 (25करोड़ 62लाख रुपये)
#तथा हाजीयों द्वारा दिया गया फिस + 7% की दर से 8 माह मे ब्याज
385,000,000,000 + 180,000,000,00 = 404,000,000,000रुपये
8 माह मे फार्म तथा फीस से कुल कमाई
404,000,000,000 + 25,620,00,00 = 404,256,200,000रुपये
इतनी रकम इकट्ठा होने के बावजूद सरकार पर सब्सिडी देने के लिए कितने रुपये का अतिरिक्त भार बढ़ रहा है? या सरकार केवल जनता को गुमराह कर रही है?
आप अभी भी गुगल करें तो पाएंगे की Air India का किराया अन्य निजी विमान कम्पनियों से लगभग दूगुना है। तो अगर 8 महीने पहने 1,75000 लोगों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर टेंडर निकाला कर सबसे सस्ते में यात्रा कराने वाली कम्पनी को हायर किया जाता। तो आप अंदाजा लगा सकते है की किराया कितनी सस्ती हो जाती। इतने सब के बावजूद सब्सिडी को बोझ या ऐहसान समझा रही सरकार जनता को केवल और केवल मुर्ख बना रही है।
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सही कहा।
ReplyDeleteपर जो भावनाएं आहत हुई हैं हम उनका हिसाब शायद अभी नही लगा सकते हैं। उन्नीस की प्रतीक्षा है। हर प्रकार के गुणा भाग का उत्तर मिल जाएगा ।
Although, the measure invites multifold interrogations, nevertheless, it gives insight of much preferable good of the community if implemented as per stated. Need to observe further...
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