गुजरात के मोरबी में रस्सी पुल टूटने से 141 लोगों के मरने की खबर है.

गुजरात के मोरबी में रस्सी पुल टूटने से 141 लोगों के मरने की खबर है.
पर हम तो खबरें Instagram पर पढ़तें हैं.
और वहां RIP लिखा कोई catchy मिंम्स दिखा नहीं जिसमें मरे हुए 141 लोगों पर शोक संदेश लिखा हो. वरना हम अब तक स्क्रीनशॉट लेकर व्हाट्सएप के स्टोरी में चेप दिए होते.
अपने WhatsApp contact list के स्टोरी के इतिहास का स्मरण कीजिए. आपको कई लोग याद आएंगे जो किसी लोक कलाकार की हत्या, किसी एक्टर के सुसाइड या अमेरिका के किसी रेजार्ट में गोली कांड जैसी घटनाओं पर कई दिनों तक पुका फाड़ कर रो रहे थे.
पर आज मोरबी रस्सी पुल में मरे 141 लोगों के प्रति शोक अभिव्यक्ति के मामले में व्हाट्सएप का स्टोरी कक्ष सूना है.
मेरा मतलब बिल्कुल भी यह नहीं है कि सोशल मीडिया पर पोस्ट (शोक व्यक्त) करने या ना करने से किसी के "संवेदनशील" होने या ना होने का कोई भी संबंध है.
हमारे स्वभाव/तर्क शक्ति पर सोशल मीडिया का कब्जा है. सोशल मीडिया जैसा चाहती हम वैसा हीं रिएक्ट करते हैं. वही सोशल मीडिया जिसकी चाबी सत्ता के हाथों में है. और सत्ता अपनी आवश्यकतानुसार हमारे emotions को handle करती है, हंसाती है, रुलाती है, समर्थन कराती है, विरोध कराती है.
अर्थात अभिव्यक्ति में डिजिटल शिलालेखों को हम जब WhatsApp/Instagram पर चेपते हैं तो उसके पीछे हमारी तर्क शक्ति नहीं बल्कि सत्ता का सुनियोजित एजेंडा होता है.
मोरबी पूल की घटना पर WhatsApp की स्टोरी लिस्ट इसलिए सूनी रह गई. क्योंकि Instagram पर mems की सप्लाई रोक दी गई. क्योंकि गुजरात में चुनाव है तो इसपर चर्चा से साहेब को भरी नुकसान होगा.

हम सोशल मीडिया के वास्ते बंधुआ मजदूर हैं. 

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