मैं तेरे इश्क़ मॆ बिहार हो जाऊं।
पिछले कई दशकों से बिहार की राजनैतिक हालात उस नई नवेली दुल्हन की तरह है जिससे शादी के बाद दहेज के लिए ससुराल वालॆ प्रताड़ित किया करते हों। बार-बार जान से मारने की कोशिश के बावजूद वो अपने हौसले और प्रतिभा के बदौलत जिवित हों। महात्मा गांधी के पसंदीदा राज्यों में से एक बिहार राजनैतिक बेवफाई सहते-सहते आज इस हाल पर पहुच गया है जब कोई बेवफाई को ही सच्चा प्यार समझने की आदत डाल ले। कई बार को तो पुरे हिंदुस्तान की हालत कुछ ऐसी ही नजर आती है। खैर सुना है हिन्दुस्तान की धरती जुर्म बर्दाश्त नहीं करती। देर सही पर जुर्म काम अंत कर देती हैं।
जय प्रकाश आंदोलन ने भारत को नई दिशा देने के साथ-साथ बहुत से युवा राजनेताओं को भी जन्म दिया। जो की अक्सर आंदोलनों के बाद होता रहता है (अन्ना आंदोलन के बाद भी हुआ)। खैर इस आंदोलन ने खासतौर पर बिहार को अपने हालातों से जुझने की शक्ति दिया। ये एक मौका था जब बिहार सहीत पुरॆ भारत के समान्य परिवार से आने वालॆ बहुत से होनहार युवाओं को एक राजनैतिक भविष्य मिली थी। और इसी मॆ बिहार को अपने समस्याओं से निजात पाने की उम्मीद नई उम्मीद भी जगी थी।
तमाम अन्य कारणों के साथ-साथ किसी भी राज्य में बिकास के लिए वहां की शासन व्यवस्था की बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है। पुराने समय से ही बिहार की बहुत बड़ी जनसंख्या को आत्मनिर्भर होने के लिए पलायन करते रहना पड़ा है। जो की बिहार की बहुत बड़ी राजनैतिक नाकामी है। नाकामी इसलिए क्योंकि पलायन की संख्या इतनी ज्यादा है जो बाकी के राज्यों में भी रोजगार पर प्रतिकूल प्रभाव डालती रही है। और पलायन में आए हुए लोगों को तमाम तरीके की परेशानियों का सामना करने के लिए विवश करती है। पलायन को लिखते हुए मुझे 1984 में नसीरुद्दीन शाह द्वारा अभीनीत फिल्म 'पार' की याद आ गई। जिसमें रोजगार की तलाश में कलकता जा रहे मुंगेर जिले के दाम्पती की हालात दिखाई गई है। (1990 के दशक तक बिहार के ज्यादातर लोग रोजगार के लिए कलकता जाया करते थे। आज-कल ज्यादातर लोग दिल्ली, मुंबई, UAE की ओर रुख कर दिए हैं)। बिहार को केवल रोजगार के लिए ही नहीं बल्कि अच्छे शिक्षा, अस्पताल इत्यादि के लिए भी दुसरे राज्यों की ओर रुख करना पड़ता है। मेरे इस बात से इंकार करने वाले लोग कम सॆ कम बिहार के इंजीनियरिंग, मेडिकल के कॉलेजों की हालात पर एक बार जरूर ध्यान दे लें। आम तौर पर लोग नई संभावनाएं तलाशने के लिए एक जगह सॆ दुसरी जगह पलायन करते है जो की अच्छी बात मानी जा सकती है। लेकिन जिस हालात में बिहार कॆ लोगो को पलायन करना पड़ता है वो पिड़ा दायक है। पिछले कई वर्षों से बिहार सरकार ने कोई भी ऐसी योजना नहीं बना पाई जिससे रोजगार के अवसर बढ़े। जाती धर्म की राजनीति में उलझी बिहार की जनता ने भी किसी ऐसे संसाधन की मांग करने से ज्यादा उचित समझा पलायन कर जाना। शायद यह भी एक कारण रहा जिससॆ की सरकार मनमानी करनॆ मॆ सफल रही।
1990 के दशक में बिहार में स्वर्ण मानसिकता के खिलाफ जो काम लालू प्रसाद यादव ने जो काम किया उसे सराहने की हिम्मत जब करता हूँ तो उसकी किमत देखकर चुप रहना मुनाशिब लगता है। खैर उस जमाने में तत्कालीन कारणों से चर्चित रहे लालू प्रसाद ने भी उतने ही काम किए जिससे जनता में उनकी फैन फॉलोइंग बनी रहे। और जनता मानसिक तौर पर इतनी विकसित न हो जो बाकी के जरुरी सवाल भी करे। कल 'आज तक' कॆ एक इंटरव्यू में कुछ सेकंड के लिए राबड़ी देवी को बोलते हुए देखा तो याद आया की उस फैन फॉलोइंग के दौर में इन्हें भी मुख्यमंत्री बनने का सुनहरा अवसर प्राप्त हो गया था। अपने डुबते हालातों से निकलने के लिए बिहार की जनता नई संभावनाएं तलाशने लगी जिसका नितीश कुमार ने भरपुर फायदा उठाया। लालू की तमाम नितीया जिसने बिहार को डुबाया मैं उसका भरपूर बिरोध करता हूँ। चाहे वो चारवाहा विद्यालय हो या लाठी भजावन तेल पियावन रैली हो। पर इन सभी से उबी हुई जनता को नितीश कुमार ने भी कुछ खास राहत नहीं दिया। बल्कि जनता को उलझाने के अलग तरीके अपनाए। कल जनमत की हत्या करते हुए नितीश कुमार BJP के साथ मिलकर सरकार बना लिए (हत्या इसलिए कहूंगा क्योकी विभिन्न दलीलों के वावजूद ये देखना जरुरी है की जनता ने किस समूह को मत दिया थॆ और सरकार किसकी बनी)। खैर ऐसे में क्या बिहार के लोगों को विरोध नहीं करना चाहिए था? हमने विरोध करना छोड़ दिया है यही कारण है की सरकार अपनी मनमानी करने में सफल हैं।
शुरु के दस वर्षों में मिडिया में सुशासन बाबू के नाम से मशहूर नितीश कुमार ने वही तरीका अपनाया जो आज बिजेपी ने अपनाया हुआ है। RJD के बहुत सॆ भ्रष्ट तथा अपराधी नॆताओ को राजनैतिक छबी और रास्ता बनाने के लिए पकड़ा गया (जैसे आज-कल CBI का इस्तेमाल हो रहा है)। बिकास के तमाम ढोंग रचे गए। लोगों में बकरीया बाटी गई (जौसॆ लालू ने चरवाहा बिद्यालय चलाया था)। लेकिन सरकार के 15 साल पुरे होने के करीब आने पर भी आज कॆ दौर की तुलना मे बिहार वहीं का वहीं है। हाँ लालू के तुलना मे तमाम उपलब्धिया गिनाई जा सकती है। पर ध्यान रहॆ एक कॆ गलत होनॆ पर यदी दुसरा भी गलत हो जाए तो मामला और खराब हो जाता है। जिन लोगों को संदेह हो वो बिहार के स्कूल, कालेज, सरकारी दफ्तरों तथा सड़कों इत्यादि का मुआयना एक बार अवश्य करें। तमाम क्षेत्रों आज भी बिजली नहीं है जहां है वहां भी नाम मात्र की ही आती है। फिर भी हम बिहार के तमाम लोगों की सफलता की कहानी सुनकर गर्व करते है। करना चाहिए भी। पर संसाधनों के बगैर या कहीं और से खुद संसाधन जुटाकर जब कोई सफलता प्राप्त करे तो वो एक मिशाल जरुर है पर वहां की सरकार की नाकामी भी है जो उसे संसाधन मुहैया कराने में बिफल हो।"दशरथ माँझी का माउंटॆन होना कमाल की बात जरुर है पर सरकार की नकामा भी है"। बिहार ही नही भारत कॆ किसी भी ऱाज्य को अगर जरुरी संसाधनो सॆ सशक्त और संपन्न न किया जाए तो उसकी हालत बिगड़ती जाएगी। और ऎसा करनॆ मॆ अगर सरकार नकाम हो तो समझ जाईए जनता को सड़को पर उतरनॆ का समय आ चुका है।
तमाम परेशानियों से जूझते हुए बिहार ने पिछले बिधान चुनाव में BJP को हराकर महागठबंधन (जिसमें JDU, RJD और कांग्रेस शामिल थी) को चुना। पिछले दशकों में दोनों (RJD, JDU) पार्टीयों से धोखा खाने के बावजूद मुकम्मल विकल्प न होने पर BJP को नकारते हुए वापिस इन्हें (RJD, JDU) को चुननॆ से ये तो साबित हो गया की बिहार खराब हाल में भी तानाशाही बर्दाश्त नहीं करने वाला है। राजनैतिक चालाकी या यूं कहें की राजनैतिक चरित्र हीनता के बुते सरकार चाहॆ जिस किसी की भी बन जाए। नितीश कुमार का BJP जाना मुझे ज्यादा आश्चर्यजनक नहीं लगता। ये तो मौके की बात है। हिन्दुस्तान मॆ सरकार बनाने के लिए किसी भी दो दलों का आपस में मिल जाना कोई बड़ी बात नहीं है। मौका मिलता तो लालू भी यही करते। हालात देखकर तो यु लग रहा है की कांग्रेस भी कही BJP मॆ मिल जांए।
खैर देखना ये है की राजनीति के गिरते हालात में जनता जनता की निंद कब खुलेगी। ये बात बिहार की हो या पुरे हिन्दुस्तान की। जरूरी हर जगह है। मनमानी करती सरकार को होश में लाने के लिए बिरोध जरुरी है। क्योंकि समय रहते बिहार की जनता ने लालू या नितीश दोनों से ही हिसाब मांगा होता तो स्थिति इतनी ज्यादा नहीं बिगड़ती। सत्ता का गुरूर तोड़ने के लिए, नियत समय में अपनी मांगों को पूरा करवाने के लिए तथा इन सरकारों को होश में लाने के लिए जरूरी है की बिरोध करें। जनता कॆ असली किरदार मॆ आएं और सरकार सॆ हिसाब मागॆं। जनमत का मजाक बनानॆ वालो को बाहर का रास्ता दिखाएं।


Wah kya khub likha sir ne aap...
ReplyDeletethank you ajay
DeleteShandar .. laga kisi prathistit akhbaar ka lekh padh Raha hu . Shandar .
ReplyDeletebahut bahut shukriya skand
DeleteAadarsh sir badiya likhe Hai
ReplyDeleteगजब का विश्लेषण , काश आम जनता भी जागरूक बने ।
ReplyDeleteगजब का विश्लेषण , काश आम जनता भी जागरूक बने ।
ReplyDelete👏👏👏👍
ReplyDeletethanks
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