असहयोग एक बजोड़ और जबरदस्त हथियार है

असहयोग

“असहयोग एक बजोड़ और जबरदस्त हथियार है। ... असहयोग कोई निष्क्रिय अवस्था नहीं है।... असहयोग का मूल द्वेष और बैर नहीं है।... एक प्रकार का जिहाद या धर्मयुद्ध है। ... असहयोग का अर्थ है स्वरक्षण की शिक्षा। ... वह अपने आपमें एक लक्ष है।“


असहयोग के इसी परिभाषा के बूते अहिंसा के एक योद्धा ने अनंत शक्तियां हासिल किया, और अथाह कृत्रिम शक्तियों से सजे अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हिंदुस्तान की प्राकृतिक विजय स्थापित किया। साबरमती के किनारे स्थित इस आश्रम के दर्शन ने मुझे बापू के और करीब पहुंचा दिया। निजी आलोचना में एक बात जरूर कहूंगा कि, वर्तमान में किनारे और आश्रम के सौंदर्य को बढ़ाने कि कोशिश में ढ़ेर सारे चमकदार चट्टानों का प्रयोग किया गया है, जो गाँधी के आत्मा को ठेस पहूचाने जैसा है। आश्रम के दोनों ओर मानव प्रगति से जड़ी आधुनिकता की लाइसेंस लिए दो पुल साबरमती पर ऐसे प्रतीत होतें हैं मानो एक शहर अपनी दोनों बाहें फैलाये किसी छोटे से आशियाने का गला दबा रखा हो। गाँधी प्रकृति के प्रेमी थे। आश्रम में मीरा, नेहरू, पटेल, टैगोर जैसे तमाम महान आत्माओं और बापू के बीच हुए कई संवादों की मूल प्रतियों को पढ़ने से उनके संबंधों कि मधुरता की सच्चाई मालूम पड़ती है।
कम समय और कमजोर कैमरे में खिची गई कुछ धुंधली तस्वीरें संलंग्न कर रहा हूँ। आप यदि गौर से देखेंगे तो पढ़ी जा सकतीं हैं। गाँधी में दिलचस्पी हो तो साबरमती आश्रम का दर्शन आपके लिए भी मजेदार बात साबित होगी।







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